लोकसभा ने बुधवार को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन को 6 महीने के लिए बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। अब यह शासन 13 अगस्त 2025 के बाद भी लागू रहेगा। केंद्र सरकार ने इस निर्णय को राज्य में धीरे-धीरे सुधरती कानून-व्यवस्था का हवाला देकर उचित ठहराया है।
हालांकि, यह कदम मणिपुर के स्थानीय नेताओं और कुकी समुदाय के प्रतिनिधियों के बीच नाराज़गी और असंतोष का कारण बन गया है। इन नेताओं का कहना है कि राष्ट्रपति शासन लगाने से पहले और इसके दौरान भी केंद्र सरकार ने उनसे कोई सलाह-मशविरा नहीं किया।
🔹 बीजेपी विधायक ने खुद पार्टी पर उठाए सवाल
बीजेपी विधायक पाओलिएनलाल हाओकिप ने The Wire से बातचीत में कहा कि राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के बाद से अब तक उन्हें पार्टी नेतृत्व की ओर से कोई संपर्क नहीं किया गया। उन्होंने यह स्वीकार किया कि सिर्फ मुख्यमंत्री बदलने से मणिपुर की समस्या हल नहीं होगी, लेकिन साथ ही राजनीतिक संवाद की कमी को लेकर सवाल उठाए।
“केंद्र ने अब सही दिशा में कदम उठाया है, लेकिन यह काफी देर से हुआ। अभी अगर मुख्यमंत्री की कुर्सी मुझे भी दी जाए, तो भी मैं नहीं लूंगा। जब तक केंद्र कोई स्थायी राजनीतिक समाधान नहीं निकालता, तब तक सरकार बनाना व्यर्थ है,” – पाओलिएनलाल हाओकिप, बीजेपी विधायक
🔸 भाजपा विधायकों में बढ़ रही बेचैनी
मणिपुर विधानसभा में कुल 60 सीटों में से 44 पर बीजेपी गठबंधन का कब्जा है, जिनमें से 37 विधायक सिर्फ बीजेपी के हैं। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की अगुवाई में हिंसा को रोकने में नाकामी के चलते पार्टी अपने ही विधायकों का समर्थन खोती नजर आ रही है।
कुकी समुदाय के सभी 10 विधायक, जिनमें से 7 बीजेपी से हैं, लगातार अपने ही नेतृत्व से निराशा जता रहे हैं। बावजूद इसके, केंद्र ने अब तक उनकी मांगों को नजरअंदाज किया है।
एक सूत्र ने The Wire को बताया कि कुछ बीजेपी विधायकों का एक प्रतिनिधिमंडल हाल ही में दिल्ली गया था ताकि राज्य में लोकतांत्रिक सरकार बहाल करने की मांग की जा सके। लेकिन उन्हें बिना किसी ठोस जवाब के लौटा दिया गया।
📌 निष्कर्ष:
केंद्र सरकार का यह कदम भले ही कानून-व्यवस्था के लिहाज़ से सही हो, लेकिन स्थानीय राजनीतिक संवाद की कमी से मणिपुर की समस्या और भी जटिल होती जा रही है। स्थायी समाधान के लिए सिर्फ प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और समावेशी संवाद की भी आवश्यकता है।