🏛️ घटना की पूरी कहानी
मेरठ स्थित ऊर्जा भवन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंडलीय समीक्षा बैठक के दौरान सपा विधायक अतुल प्रधान उसी प्रोटोकॉल में शामिल होना चाहते थे, लेकिन अधिकारियों ने उन्हें अंदर तक जाने से रोक दिया क्योंकि उनका नाम प्रतिनिधियों की सूची में नहीं था ।
उसके बाद अतुल प्रधान ने ऊर्जा भवन के गेट पर धरना शुरू कर दिया और कहा कि:
“मैं जनता का प्रतिनिधि हूँ, मेरी आवाज़ दबाई जा रही है। मुख्यमंत्री की बैठक में मुझे शामिल नहीं होने दिया गया” ।
करीब डेढ़ से दो घंटे तक बल्ले-बल्ले हालात बने रहे।
🗣️ विधायक ने क्या मुद्दे उठाए?
धरने के दौरान अतुल प्रधान ने मीडिया के सामने कहा:
- भू-माफिया जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं।
- स्वास्थ्य सेवाएँ बेहद खराब हैं; डॉक्टरों की लापरवाही से मरीजों की मौत हो रही है।
- स्कूलों की हालत ठीक नहीं, सड़कें टूटी पड़ीं, जलभराव और जाम लोग परेशान कर रहे हैं।
- अफसर फोन उठाते ही नहीं हैं।
- गंगानहर पटरी पर निर्माण कार्य अभी तक नहीं हुआ।
- कान्हा उपवन में गोवंश की मौत पर भी उन्होंने आपत्ति जताई ।
🧑💼 मुख्यमंत्री का रुख
पत्रकारों तक यह सूचना पहुँची तो CM योगी स्वयं ADMC को भेजकर अतुल प्रधान को बैठक में बुलवाने का निर्देश दिया
अतः एडीएम सिटी बृजेश कुमार सिंह विधायक को लेकर अंदर गए और उन्हें बैठक में शामिल किया गया। इस दौरान अतुल ने मुख्यमंत्री से मिलकर सीधे अपनी समस्याओं को उठाया।
📌 निष्कर्ष
- लोकतंत्र की भावना: अतुल प्रधान का धरने पर बैठना बताता है कि जनप्रतिनिधियों को भी जनता की आवाज़ सरकार तक पहुँचाने का पूरा अधिकार है।
- सीएम की सक्रियता: मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया और उन्हें अंदर बुलाना प्रशासनिक लचीलेपन का ताज़ा उदाहरण है।
- जनमूल्य समस्या: विधायक द्वारा उठाए गए इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्वास्थ सुविधाएं और शिक्षा जैसे मुद्दे आम जनता के लिए बेहद संवेदनशील हैं।
🧭 अंतिम टिप्पणी
क्या यह घटना ‘मंडलवार संवाद’ पहल की काबिलियत का प्रमाण देने वाली विंडो है?
मुख्यमंत्री ने खुद हस्तक्षेप कर विधायक को कानूनी शुरुआत देने की कोशिश की।
अतुल प्रधान ने भी लोगों की आवाज़ को सरकार तक पहुँचाने का जो तरीका अपनाया—उसमें लोकतंत्र की शक्ति साफ झलकती है।