‘डिटेक्टिव शेरदिल’ रिव्यू दिलजीत दोसांझ की मर्डर मिस्ट्री में नहीं है कोई रहस्य, बस है दिखावा!

दिलजीत दोसांझ की नई फिल्म ‘डिटेक्टिव शेरदिल’ एक मर्डर मिस्ट्री के रूप में सामने आती है, लेकिन यह केवल ‘Knives Out’ जैसी हिट फिल्मों की नक़ल करने की कोशिश लगती है — और वह भी बिना किसी असली सस्पेंस या रोमांच के।

🕵️ कहानी में है झोल, रहस्य में नहीं कोई पोल

फिल्म की कहानी एक आलीशान हवेली में होने वाले एक कत्ल के इर्द-गिर्द घूमती है, जहां सभी रिश्तेदार संदिग्ध हैं। दिलजीत दोसांझ, जो इस फिल्म में एक झोला उठाए घूमने वाले ‘डिटेक्टिव शेरदिल’ बने हैं, इस मर्डर मिस्ट्री को सुलझाने आते हैं। लेकिन अफसोस, मिस्ट्री इतनी सतही है कि दर्शक फिल्म शुरू होने के 20 मिनट में ही कातिल को पकड़ लेते हैं।

🎭 अभिनय और हास्य का मेल

दिलजीत दोसांझ हमेशा की तरह अपनी कॉमिक टाइमिंग और चुलबुले अंदाज़ से प्रभावित करते हैं, लेकिन स्क्रिप्ट उनके टैलेंट के साथ न्याय नहीं कर पाती। फिल्म में कॉमेडी डाली गई है, लेकिन वह मर्डर मिस्ट्री को मज़ेदार बनाने की बजाय कमजोर कर देती है।

🎬 निर्देशन और प्रस्तुति

निर्देशक ने फिल्म को स्टाइलिश बनाने की बहुत कोशिश की है — रंगीन लाइट्स, रॉयल हवेली, धीमे डायलॉग्स — लेकिन जब तक कहानी में कसावट ना हो, तब तक सब कुछ बेअसर लगता है। फिल्म की सबसे बड़ी कमी है रहस्य की कमी। दर्शकों को न तो चौंकाया जाता है, न ही उलझाया जाता है।

⭐ क्या है फिल्म की ताकत?

  • दिलजीत का स्वैग और परफॉर्मेंस
  • कुछ मज़ेदार पंचलाइन
  • विज़ुअल प्रेज़ेंटेशन और सेट डिज़ाइन

❌ क्या है फिल्म की कमज़ोरी?

  • ज़बरदस्ती का ट्विस्ट जो तुरंत पकड़ा जा सकता है
  • कमजोर स्क्रिप्ट और ढीला निर्देशन
  • थ्रिल और सस्पेंस का लगभग ना के बराबर होना

📽️ निष्कर्ष:

‘डिटेक्टिव शेरदिल’ उन दर्शकों को अपील कर सकती है जो सिर्फ दिलजीत दोसांझ की झलक देखने सिनेमाघर जाते हैं। लेकिन जो दर्शक एक मजबूत मर्डर मिस्ट्री और दिमागी खेल की उम्मीद करते हैं, उनके लिए यह फिल्म निराशाजनक साबित हो सकती है।

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