भारत की यूरोप के साथ बढ़ती रणनीतिक साझेदारी के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने साइप्रस और क्रोएशिया का दौरा करेंगे। यह दौरा कनाडा में होने वाले G7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के क्रम में होगा—साइप्रस जाते समय और क्रोएशिया लौटते समय।
तुर्की से तनाव के बीच साइप्रस दौरा
प्रधानमंत्री का साइप्रस दौरा उस समय हो रहा है जब भारत और तुर्की के रिश्तों में तल्खी है। हाल ही में भारत द्वारा किए गए ऑपरेशन सिंदूर—जो पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकवादी ठिकानों पर लक्षित था—के बाद, तुर्की और पाकिस्तान की निकटता और भी अधिक बढ़ गई है। तुर्की ने इस सैन्य कार्रवाई के विरोध में खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया है।
ऐसे माहौल में साइप्रस—जो 1974 से तुर्की के साथ संघर्षरत है—का दौरा रणनीतिक दृष्टिकोण से अहम माना जा रहा है।
यूरोपीय संघ के रणनीतिक साझेदार
साइप्रस और क्रोएशिया दोनों ही यूरोपीय संघ (EU) के सदस्य देश हैं। खास बात यह है कि साइप्रस अगले वर्ष की पहली छमाही में EU काउंसिल की अध्यक्षता संभालने जा रहा है, जिससे भारत के लिए कूटनीतिक संवाद और सहयोग के नए अवसर खुल सकते हैं।
पीएम मोदी का क्रोएशिया दौरा पहले अप्रैल में नीदरलैंड और नॉर्वे के साथ प्रस्तावित था, लेकिन पाकिस्तान के साथ बढ़ते सैन्य तनाव के चलते उसे टाल दिया गया था।
कनाडा में G7 सम्मेलन
G7 शिखर सम्मेलन 15 से 17 जून के बीच कनाडा के कनानास्किस, अल्बर्टा में आयोजित होगा। प्रधानमंत्री मोदी अंतिम दिन होने वाले आउटरीच सत्र में भाग लेंगे। चूंकि कनाडा से आमंत्रण अपेक्षाकृत देर से मिला, इसलिए उनके कार्यक्रम की रूपरेखा अब भी तय की जा रही है। सम्मेलन के इतर द्विपक्षीय बैठकों की भी योजना बनाई जा रही है।
ऐतिहासिक बन सकता है साइप्रस दौरा
साइप्रस की यात्रा ऐतिहासिक मानी जा रही है, क्योंकि यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की केवल तीसरी आधिकारिक यात्रा होगी। इससे पहले 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी और 1983 में इंदिरा गांधी ने साइप्रस का दौरा किया था। इस यात्रा को न केवल भारत-साइप्रस संबंधों को मजबूत करने के रूप में देखा जा रहा है, बल्कि यह भारत की पश्चिम एशिया और यूरोप के प्रति रणनीति को भी दर्शाता है।
साइप्रस-तुर्की विवाद: एक पृष्ठभूमि
1974 में तुर्की द्वारा किए गए सैन्य हस्तक्षेप के बाद से साइप्रस दो हिस्सों में बंटा हुआ है। दक्षिणी भाग, जो यूनानी साइप्रसियों के नियंत्रण में है, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है और EU का सदस्य भी है। जबकि उत्तरी भाग को केवल तुर्की मान्यता देता है, जिसे “तुर्की गणराज्य उत्तरी साइप्रस” कहा जाता है। दोनों क्षेत्रों के बीच संयुक्त राष्ट्र का एक बफर ज़ोन है।
इस विवाद में भारत की स्थिति हमेशा अंतरराष्ट्रीय मान्यताओं के अनुरूप रही है, और पीएम मोदी की यह यात्रा संभवतः साइप्रस के साथ गहरी होती रणनीतिक साझेदारी को और मजबूती देगी।